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प्रेम हो और उसमें रूठना, मनाना, उलाहने देना आदि न हो तो प्रेम कुछ फीका सा लगता है। परन्तु साब प्रेमी व भक्त की बात ही कुछ निराली होती है। जहाँ सारे शास्त्र ईश्वर को जिज्ञासा का विषय बताते हैं वहीं भक्त दोनों हाथ उठाकर कहता है कि
बड़ा ही दयालु है वो बाँके बिहारी
उसे तुम आजमा कर तो देखो
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