अल्लाह हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की मुबारक जुबान से कहलवा रहा है; ( कहनेवाले हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम है और कहलवा ने वाला अल्लाह तआला है ! ) Surat No. 7 Ayat NO. 188 ऐ नबी ! इनसे कहो कि “मैं अपने आप के लिये किसी फ़ायदे और नुक़सान का इख़्तियार नहीं रखता। अल्लाह ही जो कुछ चाहता है वो होता है, और अगर मुझे ग़ैब [ परोक्ष] का इल्म होता तो मैं बहुत-से फ़ायदे अपने लिये हासिल कर लेता और मुझे कभी कोई नुक़सान न पहुँचता। मैं तो सिर्फ़ ख़बरदार करनेवाला और ख़ुशख़बरी देनेवाला हूँ उन लोगों के लिये जो मेरी बात मानें।”
@user-yg3tj7no4w21 күн бұрын
अल्लाह तआला हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की मुबारक जुबान से कहलवा रहा है , Surat No. 72 Ayat NO. 21 कहो, "मैं तुम लोगों के लिये न किसी नुक़सान का इख़्तियार रखता हूँ न किसी भलाई का।"
@user-yg3tj7no4w21 күн бұрын
अल्लाह हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की मुबारक जुबान से कहलवा रहा है, Surat No. 10 Ayat NO. 49 कहो, “मेरे इख़्तियार में ख़ुद अपना फ़ायदा और नुक़सान भी नहीं, सब कुछ अल्लाह की मर्ज़ी पर टिका है। हर उम्मत के लिये मोहलत की एक मुद्दत है, जब ये मुद्दत पूरी हो जाती है तो घड़ी भर के लिये भी आगे-पीछे नहीं होती।”
@user-yg3tj7no4w21 күн бұрын
अल्लाह तआला हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की मुबारक जुबान से कहलवा रहा है , ( कहनेवाले हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम है और कहलवा ने वाला अल्लाह तआला है) Surat No. 6 Ayat NO. 50 ऐ नबी! इनसे कहो, “मैं तुम से ये नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं। न मैं ग़ैब का इल्म रखता हूँ, और न ये कहता हूँ कि मैं फ़रिश्ता हूँ। मैं तो सिर्फ़ उस वह्यी की पैरवी करता हूँ जो मुझ पर उतारी जाती है।” फिर इनसे पूछो क्या अन्धा और आँखोंवाला दोनों बराबर हो सकते हैं? क्या तुम ग़ौर नहीं करते?
@user-yg3tj7no4w21 күн бұрын
अल्लाह तआला हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की मुबारक जुबान से कहलवा रहा है , Surat No. 11 Ayat NO. 31 और मैं तुमसे नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं, न ये कहता हूँ कि मैं ग़ैब का इल्म रखता हूँ, न ये मेरा दावा है कि मैं फ़रिश्ता हूँ। और ये भी मैं नहीं कह सकता कि जिन लोगों को तुम्हारी आँखें हिक़ारत और अपमान से देखती हैं, उन्हें अल्लाह ने कोई भलाई नहीं दी। उनके मन का हाल अल्लाह ही बेहतर जानता है, अगर मैं ऐसा कहूँ तो ज़ालिम हूँगा।”
@user-yg3tj7no4w21 күн бұрын
Surat No. 2 Ayat NO. 255 ➡️ आयतुल कुर्सी अल्लाह हमेशा ज़िन्दा रहनेवाली वो हस्ती, जो पूरी कायनात को सँभाले हुए है, उसके सिवा कोई अल्लाह नहीं है। वो न सोता है और न उसे ऊँघ लगती है। ज़मीन और आसमानों में जो कुछ है, उसी का है। कौन है जो उसके सामने उसकी इजाज़त के बिना सिफ़ारिश कर सके? जो कुछ बन्दों के सामने है, उसे भी वो जानता है और जो कुछ उनसे ओझल है, उसे भी वो जानता है और उसके इल्म में से "कोई चीज़" ( بِشَیۡءٍ - Anything ) उनके इल्म की पकड़ में नहीं आ सकती, ये और बात है कि किसी चीज़ का इल्म वो ख़ुद ही उनको देना चाहे। उसकी हुकूमत आसमानों और ज़मीन पर छाई हुई है और उनकी देखभाल उसके लिये कोई थका देनेवाला काम नहीं है। बस वही एक बुज़ुर्ग और बरतर हस्ती है।