I am not available to find next episode. Can you please send me link
@simransingh9819 Жыл бұрын
Wheres next part
@avtarsingh-lg8tk Жыл бұрын
Next part ??
@harpindersingh20595 жыл бұрын
thind Saab ek talk babbu maan ji naal vi rkhlo... new movie aa rahi aa... BANJARA
@iqbalsinghh4429 Жыл бұрын
Guru Sehban ji me 20 rs. Da sacha soda kita , ki us time currency rupey vich c ?
@rammurtilath2529 Жыл бұрын
प्रोफेसर साहब सुल्तान महमूद गजनवी ने कश्मीर में प्यार से धर्म परिवर्तन किया था?
@PritpalSingh-td1fv2 жыл бұрын
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@harnamsinghheera4131 Жыл бұрын
सत्तिगुरू कबीर साहिब बंदीछोड़ के शिष्य गुरु नानक देव जी ने "सत्तिनाम" का शब्द कबीर साहिब से प्राप्त किया। सिख विद्वान इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि कबीर साहिब बंदीछोड़ और गुरु नानक देव जी सारा जीवन आपस में कभी मिले ही नहीं। देखने वालों बात है कि यदि वो दोनो महान पुरुष आपस में कभी मिले ही नहीं तो सत्ता का शब्द गुरु नानक देव जी के पास कहाँ से आया? कया इस बात पर डा कशमीरा सिंह जी इस बिंदु पर अपने विचार देंगे? जहां तक सच्चा सौदा की साखी का प्रश्न है, सीधी बात करना ठीक होगा। कया उस समय कोई होटल या ढाबा था जहाँ भूखे साधुओं को खाना खिलाया। या गुरु नानक देव जी के पास तवा परात कड़छी थी जिसकी सहायता से साधुओं को खाना खिलाया। यथार्थ कड़वा होता है। असल में सिख विद्वान कबीर साहिब को शुरू से ही छोटा सिद्ध करने की कोशिश में लगे हैं। इतिहासकार अंदाज़े लगा रहे हैं, जबकि बाणी सच्च बोलती है और बाणी ही इतिहास को अपने में संभाले हुए है। कबीर साहिब चूहड़काणे के नज़दीक एक बाग में कुछ अन्य महापुरुषों व सेवक साधुओं के साथ सत्तनाम व सत्तकरतार का प्रचार करने हेतु पंजाब के दौरे पर थे। बाला अपना बैल गड्डा लेकर नानक जी के साथ चूहड़काणे के लिए जा रहे थे। बाग में सत्तिसंग चल रहा था। दूर से ही पता लग रहा था कि काफी लोग संगत के रूप में कबीर साहिब और दूसरे महापुरुषों के सामने बैठे थे। और थोड़ी सी दूर लंगर तैयार करने में व्यस्त थे। उस समय गुरु नानक देव जी की आयु लगभग सोलह सत्तरह साल की होगी। धार्मिक प्रवृत्ति के कारण वह सत्तिसंग व महा पुरुषों को बिना मिले नहीं जा सकते थे। गड्डे से उतर कर जब पास पहुंचे, गुरु नानक अपने को रोक नहीं सके। उन्होंने रूपयों वाला परना बाले से लिया और गांठ खोल कर सारे रुपये कबीर साहिब के चरणों में ढेर कर दिये। कबीर साहिब ने बालक की पीठ ठोकी और कहा बेटा यह रुपये उठा लो। बालक नानक जी ने कहा कि यह रुपये मेरे नहीं हैं कयोंकि मैंने तो ये रुपये आपके चरणों में अरपण कर दिए हैं। कबीर साहिब ने अंत नानक जी को कहा यदि आप यह राशि देना ही चाहते हो तो बाज़ार से राशन लाकर चल रहे लंगर में डाल दो, आपके नाम से आज का लंगर हो जाएगा। उन्होंने ऐसा ही किया। यदि आपके अनुसार दस साधू भी होते तो भी चार आने प्रति व्यक्ति की दर से केवल चालीस आने खरच होने थे। सारे खरच के बाद भी साढ़े सतरह रुपये बच जाने थे। दुकान के लिए सौदा भी आ जाता और पिता से चपेड़ें भी नहीं खानी पड़ती। बात कुछ की कुछ बना दी गई है। गलत इतिहास एक दिन रेत की दीवार की तरह गिरने से बच नहीँ सकेगी। सिकंदर लोधी बादशाह और कबीर साहिब का इतिहास भी आप इग्नोर कर रहे हैं। बात लंबी है। गुरु ग्रंथ साहिब का अध्ययन करने से सारी दुविधा दूर हो सकती है। हरनाम सिंह हीरा। मोहाली।