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दुनिया का कोई भी शब्द-चित्र मेरे आराध्य राघवेंद्र के मानवीय स्वरूप की सटीक और पूर्ण व्याख्या नहीं कर सकता पर फिर भी जगतनियंता के प्रति श्रद्धा निवेदित करने का यथाशक्ति प्रयास अपनी सीमाओं में घिरे हम मनुष्यों की सहज प्रवृत्ति है ! अपने-अपने राम एल्बम का यह दूसरा गीत सृष्टि के कण-कण में उपस्थित उन्हीं राघवेंद्र को समर्पित है जो आप सबके हृदय में भी चेतना के रूप में विराजित हैं। 😍🙏🏻
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