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जय गुरुदेव
योग दर्शन में शक्तिपात एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा गुरु अपनी आध्यात्मिक शक्ति शिष्य में स्थापित करता है। शक्तिपात एक गुप्त मन्त्र के द्वारा किया जा सकता है या आँख द्वारा देखकर या विचार द्वारा या स्पर्श द्वारा।
शक्तिपात, कुंडलिनी तंत्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। यह कुंडलिनी जागृत करने की एक सरल व शीघ्र विधि हैं। प्राचीन काल से, यह विधि गुरूओ के द्वारा अपने शिष्यों को दी जा रही है। इसमें गुरु शिष्य को एक गुप्त मंत्र देते हैं और साथ में शिष्य को मां शक्ति व महादेव शिव की साधना करने के लिए कहते हैं;और यदि कुंडलिनी जागृत करने में शिष्य को कोई बाधा या समस्या उत्पन्न होती है, तो गुरु शिष्य को शक्तिपात देते हैं। इसमें सक्षम व दक्ष गुरु जिसकी स्वयं की कुंडलिनी जागृत होती है, वह शिष्य के त्रिनेत्र को अपने अंगुष्ठ से स्पर्श कर, अथवा मानसिक या दूर से हस्त के द्वारा ब्रह्मांडीय माता कुंडलिनी शक्ति की ऊर्जा को प्रवाह करते हैं। इससे साधक को कुंडलिनी शक्ति जागरण का अस्थायी अनुभव प्राप्त होता है। यदि साधक साधना के उच्च स्तर पर है तो वह कुंडलिनी जागृत रख सकता है। इसको जीवन पर्यन्त जागृत रखने के लिए, साधक को नित्य साधना में अभ्यासरत रहना चाहिए।
हम सब शक्ति से ही संचालित हैं| हमारे अंदर एक ही शक्ति तीन रूप में कार्य करती है| इस त्रिगुणात्मक शक्ति को चेतना कहा जाता है| आत्मा, मन और प्राण चेतना के तीन भाग हैं| सामान्य रूप से चेतना बहिर्मुखी होती है| यानी इस चेतना का उपयोग सिर्फ भौतिक कार्यों में होता है| मनुष्य इस चेतना रूपी शक्ति का उपयोग भौतिक जगत के लिए करता है| आध्यात्मिक जगत के लिए यह शक्ति प्रस्तुत रहती है| इसी शक्ति को कुंडलिनी कहा जाता है| जब कुंडलिनी यानी चेतना अंतर्मुखी होकर मानव के आध्यात्मिक विकास में लग जाती है तब इसे शक्तिपात कहते हैं|
ध्यान साधना के क्षेत्र में शक्तिपात शब्द बहुत चर्चित है| शक्तिपात के जरिए व्यक्ति की चेतना का आंतरिक भाग क्रियाशील हो जाता है| चेतना अंतर्मुखी हो जाती है| आत्मा, मन और प्राण आध्यात्मिक उन्नति में लग जाते हैं|
चेतना को आंतरिक रूपांतरण में लगा देने का नाम ही शक्तिपात है| जब चेतना जागृत होकर व्यक्ति को खुद ही आध्यात्मिक उन्नति के लिए आगे ले जाने लगे तो समझिये शक्तिपात हो गया|
शक्तिपात किसी भी माध्यम से हो सकता है| एक अधिकारी गुरु अपनी शक्तियों से व्यक्ति की चेतना को अन्तर्मुखी कर क्रियाशील कर सकता है| व्यक्ति में पात्रता विकसित होने पर स्वयं परमात्मा शक्तिपात कर सकते हैं| व्यक्ति की साधना, आराधना से शक्तिपात हो सकता है| किसी अदृश्य सत्ता के द्वारा शक्तिपात हो सकता है| प्रारब्ध के संस्कारों के कारण शक्तिपात हो सकता है|
शक्तिपात के लक्षण
शक्तिपात क्या है
शक्तिपात दीक्षा
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शक्तिपात योग रहस्य
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कुंडलिनी जागरण और शक्तिपात
आदि शक्ति
इच्छा शक्ति
शक्ति उपासना
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शक्तिपात का मतलब
शक्तिपात क्या होता है
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