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देह स्थिर होते ही मन स्थिर हो जाएगा | आसन सिद्ध तो मंत्र सिद्ध| योगी बुद्धि प्रकाश |

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Brahmavidya

Brahmavidya

Күн бұрын

जय गुरुदेव
भारत में, साधारण बोलचाल में, कब्र को या मरे हुए व्यक्ति के स्मारक को समाधि कहते हैं। जब किसी को किसी जगह दफनाया जाता है या किसी का कहीं अंतिम संस्कार होता है और उस जगह पर किसी तरह का कोई चबूतरा या स्मारक बना दिया जाता है, तो उस जगह को उस व्यक्ति की समाधि कहते हैं। पर वास्तव में, समाधि मानवीय चेतना की वो सबसे ऊँची अवस्था है, जिस तक कोई व्यक्ति पहुँच सकता है।
जब कोई मरता है और दफनाया जाता है तो उस जगह को उस व्यक्ति का नाम दे देते हैं। जब कोई किसी खास जगह पर कोई खास अवस्था पा लेता है तो उस जगह का नाम उस व्यक्ति के नाम के साथ जुड़ जाता है। यही कारण है कि बहुत से योगी किसी खास जगह के नाम से जाने जाते हैं। कुछ इसी तरह से श्री पलानीस्वामी को उनका नाम मिला क्योंकि वे समाधि की अवस्था में जिस जगह बैठे, उस जगह का नाम पलानी था। लोग उन्हें बस पलानीस्वामी कहते थे क्योंकि उन्होंने कभी, किसी को भी अपना परिचय नहीं दिया था। उन्होंने किसी को अपना नाम नहीं बताया क्योंकि उनका कोई नाम ही नहीं था। चूंकि वे उस जगह समाधि की अवस्था में बैठे तो लोग उन्हें पलानीस्वामी कहने लगे। बहुत सारे योगियों और ऋषियों के नाम इस तरह से पड़े।
बुद्धि का मूल स्वभाव है अंतर बनाना, फर्क करना, दो चीजों को अलग-अलग देखना। आप एक व्यक्ति और एक पेड़ में इसीलिये फर्क कर सकते हैं क्योंकि आपकी बुद्धि काम कर रही है। ये फर्क करने का गुण हमारे जीवित रहने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। अगर आपको कोई पत्थर तोड़ना है तो आपको उस पत्थर और अपनी उंगली में फर्क समझना होगा, नहीं तो आप अपनी उंगली तोड़ लेंगे। फर्क करने का गुण वो साधन है जो आपके शरीर की हर कोशिका में मौजूद जीवित रहने की इच्छा को सहयोग देता है और उसे चलाता है।
अगर आप इस बुद्धि के परे चले जाते हैं तो आप समबुद्धि वाले हो जाते हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि आपकी फर्क करने की काबिलियत खत्म हो जाती है। अगर ये खत्म हो जाये तो आप पागल हो जायेंगे। समाधि की अवस्था में भी आपकी फर्क करने वाली बुद्धि अपनी सही अवस्था में होती है पर साथ ही, आप इसके परे चले गये होते हैं। आप कोई फर्क, कोई अंतर नहीं कर रहे, आप बस वहाँ हैं और जीवन को उसका सही काम करते हुए देखते हैं। जिस पल में आप बुद्धि को छोड़ देते हैं या उससे परे चले जाते हैं, तो फिर कोई फर्क नहीं रह जाता।
हर चीज़ एक हो जाती है, पूर्ण बन जाती है, जो एक वास्तविकता है। इस तरह की अवस्था आपको अस्तित्व की एकात्मकता का, यानी हर चीज़ के एकीकरण का अनुभव देती है।
आध्यात्मिकता का पूरा पहलू मात्र जीवित रहने के भाव के परे जाना है, जो सिर्फ जीवन की भौतिकता के लिये ही मायने रखता है। समाधि, सम होने की, हर परिस्थिति में एक जैसा होने की, हर चीज़ को एक जैसा देखने की वो अवस्था है, जिसमें बुद्धि अपने फर्क करने के समान्य काम के परे चली जाती है। इसके कारण व्यक्ति अपने शरीर से थोड़ा छुटा हुआ, थोड़ा अलग पड़ जाता है। आपका शरीर, और, आप जो हैं, उसमें अंतर आ जाता है।
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Пікірлер: 5
@JagatPratapSingh-mw2nm
@JagatPratapSingh-mw2nm 22 күн бұрын
प्रभु आपकी बात में दम है मैं आपसेसहमत हूं
@GopalSharma-tj1py
@GopalSharma-tj1py 8 ай бұрын
Bahut sundar 🎉
@ritashah6938
@ritashah6938 8 ай бұрын
🙏🙏
@vaishalibenshah5803
@vaishalibenshah5803 8 ай бұрын
गुरुजी के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम 🙏🏻
@dnshsharma320
@dnshsharma320 7 ай бұрын
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