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Corner plots/कॉर्नर प्लॉट पर भवन निर्माण एवं प्रभाव।@upendravasturesolve5368
जिस भवन या भूखण्ड के दो दिशाओं के रास्ते/रोड़ एक कोण पर मिलते हैं ,उस भूखण्ड/भवन को कॉर्नर प्लॉट कहते हैं।
भवन निर्माण में दिशाओं का बहुत बड़ा महत्व होता है।
दिशाओं से प्रवाहित ऊर्जा का प्रभाव उस भवन के निवासियों पर पड़ता है।
उत्तरी एवं पूर्वी दिशाओं से प्रवाहित जैविक एवं प्राणिक(उदित) ऊर्जा निश्चय ही हमें साकारात्मक प्रभावों से आप्लावित करते हैं।
दक्षिणी एवं पश्चिमी दिशाओं से प्रवाहित(क्रूर एवं अस्त)ऊर्जा हमें अपने प्रभावों से प्रभावित करता है।
यहीं कारण है कि वाल्मीकि रामायण या वास्तुशास्त्रक ग्रन्थों में आया है, कि दक्षिण एवं पश्चिम दिशाओं में ऊंची एवं उत्तर एवं पूर्व दिशा में ढ़लान वाली भूमि सर्वश्रेष्ठ होती है।
दक्षिण पश्चिम दिशा के रोड़ के आपस में मिलने से नैऋत्य भूखण्ड का निर्माण होता है, जो आवासीय निर्माण के लिए निम्न श्रेणी का माना गया है।
हालांकि नैऋत्य भूखण्ड पर निर्माण कुछ विशेष प्रकार के व्यवसाय के लिए बहुत ही उत्तम होता है।
विशेष जानकारी के लिए वीडियो देखें!
आपका ज्योतिष वास्तु सलाहकार उपेन्द्र कुमार पटना(बिहार)
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