No video

हमेशा युवा बना रहु | परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है || योगी बुद्धि प्रकाश |

  Рет қаралды 246

Brahmavidya

Brahmavidya

Күн бұрын

जय गुरुदेव
इन्द्रियोंके शब्दादि विषयोंमें वैराग्य अर्थात् ऐहिक और पारलौकिक भोगोंमें आसक्तिका अभाव और,अनहंकार -- अहंकारका अभाव। तथा जन्म? मृत्यु? जरा? रोग और दुःखोंमें अर्थात् जन्मसे लेकर दुःखपर्यन्त प्रत्येकमें अलगअलग दोषोंका देखना। जन्ममें गर्भवास और योनिद्वारा बाहर निकलनारूप जो दोष है उसको देखना -- उसपर विचार करना। वैसे ही मृत्युमें दोष देखना? एवं बुढ़ापेमें प्रज्ञाशक्ति और तेजका तिरोभाव और तिरस्काररूप दोष देखना? तथा शिरपीड़ादि रोगरूप व्याधियोंमें दोषोंका देखना? अध्यात्म? अधिभूत और अधिदैवके निमित्तसे होनेवाले तीनों प्रकारके दुःखोंमें दोष देखना। अथवा ( यह भी अर्थ किया जा सकता है कि ) दुःख ही दोष है? इस दुःखरूप दोषको पहले कहे हुए प्रकारसे जन्मादिमें देखना अर्थात् जन्म दुःखमय है? मरना दुःख है? बुढ़ापा दुःख है और सब रोग दुःख हैं -- इस प्रकार देखना? परंतु ( यह ध्यान रहे कि ) ये जन्मादि दुःखके कारण होनेसे ही दुःख हैं? स्वरूपसे दुःख नहीं हैं। इस प्रकार जन्मादिमें दुःखरूप दोषको बारंबार देखनेसे शरीर? इन्द्रिय और विषयभोगोंमें वैराग्य उत्पन्न हो जाता है। उससे मनइन्द्रियादि करणोंकी आत्मसाक्षात्कार करनेके लिये अन्तरात्मामें प्रवृत्ति हो जाती है। इस प्रकार ज्ञानका कारण होनेसे जन्मादिमें दुःखरूप दोषकी बारंबार आलोचना करना ज्ञान कहा जाता है।
जो जीवन-मुक्त महापुरुष हैं, उनके शरीर में जरा और मरण होने पर भी वे इनसे मुक्त हैं वे यह जानते हैं कि बुढ़ापा और मृत्यु शरीर के होते हैं। मुझ आत्मा के नहीं। प्रकृति के कार्य शरीर के साथ उनका सर्वथा सम्बन्ध-विच्छेद रहता है। जब मनुष्य शरीर के साथ तादात्म्य (मैं यह शरीर हूँ) मान लेता है, तब शरीर के वृद्ध होने पर ‘‘मैं वृद्ध हो गया’’ और शरीर के मरने को लेकर ‘‘मैं मर जाऊँगा’’- ऐसा मानता है। यह मान्यता ‘‘ शरीर मैं हूँ और शरीर मेरा है’’ इसी पर टिकी हुई है।
13वें अध्याय के 8वें श्लोक में आया है- जन्म-मृत्यु, जरा और व्याधि में दुःखरूप दोषों को देखना- इसका तात्पर्य यह है कि शरीर के साथ ‘‘मैं’’ और ‘‘मेरापन’’ का सम्बन्ध न रहे। जब मनुष्य मैं और मेरा-पन से मुक्त हो जायेगा, तब वह जरा-मरण आदि से भी मुक्त हो जायेगा, क्योंकि शरीर के साथ माना हुआ सम्बन्ध ही वास्तव में जन्म-मरण का कारण है (गीता- 13/21)। वास्तव में हमारा शरीर के साथ सम्बन्ध नहीं है, जब ऐसा जानते हैं; तभी सम्बन्ध मिटता है। मिटता वही है, जो वास्तव में नहीं होता।
मृत्यु के बाद क्या होता है
मृत्यु प्रमाण पत्र कैसे बनाएं
मृत्यु कैसे होती है
मृत्यु अंतिम सत्य
अकाल मृत्यु क्यों होती है
अच्छे लोगों की मृत्यु
मृत्यु आत्मा
मृत्यु आने के संकेत
मृत्यु कैसे आती है
इच्छा मृत्यु क्या है
मृत्यु के बाद इंसान कहा जाता है
मृत्यु ही सत्य है
Contact Us-
Phone/Whatsapp- +919997963261
Mail- Apundir079@gmail.com
Facebook- / yogi.b.prakash

Пікірлер: 6
@dipikasharma
@dipikasharma 9 ай бұрын
आभार ❤🙏🙏🙏
@lomashgiri
@lomashgiri 9 ай бұрын
आत्मा अमर हो ता हे सरिर मर्ता हे और हम दुस्रे एउनिमे जनम लेके फिर इस धर्तिमे आयेङ्गे ।फिर जनम क्या एकि आत्मा का होरहाहे? I hope guru ji आप ने मेरा कौतुहल मिटायेङ्गे।जय गुरुदेब
@Brahmavidya00
@Brahmavidya00 9 ай бұрын
हा
@vpnsta1
@vpnsta1 9 ай бұрын
जन्म वासनाओं का होता है आत्मा तो शाश्वत है ही सदैव सनातन आत्मा का अपना कोई रूप गुण धर्म नहीं है सब इन इच्छाओं और कामनाओं से युक्त जीव का है
@vpnsta1
@vpnsta1 9 ай бұрын
गुरुजी ये पहला प्रश्न किसने पूछा एकदम आवाज और टोन मेरी जैसी है
@Realbett
@Realbett 9 ай бұрын
Dhanyawad
艾莎撒娇得到王子的原谅#艾莎
00:24
在逃的公主
Рет қаралды 53 МЛН
managed to catch #tiktok
00:16
Анастасия Тарасова
Рет қаралды 45 МЛН
Please Help Barry Choose His Real Son
00:23
Garri Creative
Рет қаралды 23 МЛН
Sri Gopal Sahastranaam Stotram l Rishi VedVyas Rachit l  Madhvi Madhukar
30:34
November 7, 2023
35:03
Brahmavidya
Рет қаралды 547
艾莎撒娇得到王子的原谅#艾莎
00:24
在逃的公主
Рет қаралды 53 МЛН