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Katha 51
26 June 2024
सौभाग्यशाली विचारवान गुरुमुख सज्जनमंडली अपने सन्मुख विराजमान श्री श्री 108 श्री हजूर सदगुरु देव जी महाराज जी
के पावन श्री दर्शन अपने हृदय में स्थापित करते हुए अपनी मुख वाणी को पवित्र बनाने के लिए प्रेम सहित मिलकर
बोलो जयकारा बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जय
गुरुमुख प्रेमियों यह स्वर्णम अवसर जो हमको इस समय उपलब्ध हो रहा है कि हमारे हृदय सम्राट श्री श्री 108
श्री हजूर सदगुरु देव जी महाराज जी ऊंचे सिंहासन पर विराजमान हैं और गुरुमुख जन उनके चरण कमलों की छत्र छाया मेंबैठकर यह आनंददायक घड़ियां प्राप्त कर रहे हैं वास्तव में यह हमारी इस देव दुर्लभ काया देव दुर्लभ मानव जन्म को सफल बनाने वाला सुअवसर है
क्योंकि संत सत्पुरुष की शरणागति में आकर ही इस मनुष्य
को अपने आपकी परख आती है कि मैं कौन हूं ?
कहां से आया हूं और कहां मुझे जाना है ?
क्या मुझे यहां आकर के करना है ?
वास्तव में जो हमारा निज स्वरूप है या
जो सच्चा रूहानी खजाना है वह हमारे अंदर ही मौजूद है कहीं बाहर से नहीं लाना है
लेकिन यह जीवात्मा इस संसार की माया की भलावनी रचना में भूल करके
उस अपने वास्तविक स्वरूप को और उस वास्तविक खजाने को भूल बैठी है गवा बैठी है
अब जैसे ही यह संतो महापुरुषों की संगत में आता है तो वो इसे याद कराते हैं
वचन है रामायण में कि व्यापक एक ब्रह्म अविनाशी ...
सत चेतन घन आनंद राशि..
अस प्रभु हृदय अछत अविकारी ..
सकल जीव जग दीन दुखारी ...
नाम निरूपण नाम जतन ते ...सो प्रगट
जिम मूल रतन ते . ।
कहते के वो पारब्रह्म परमेश्वर सर्वव्यापक है और उसका स्वरूप कैसा है वह सुख राशि है आनंद राशि है ..आनंद का भंडार है
उसके होने से ही यह संसार के जो छोटे छोटे सुख हैं हमको
भाषित हो रहे
तो उसके लिए कहते हैं कि ऐसा जो
ब्रह्म सच्चिदानंद घन है ..
जो आनंद का खजाना है ऐसा पारब्रह्म परमेश्वर वह प्रभु हर एक मनुष्य के इस काया के भीतर ही बैठा है कि
अस प्रभु हदय अक्षत अविकारी
वह अविकारी भी है उसमें कोई विकार नहीं जीवात्मा में अवश्य विकार आ गए है उसको भुला करके..
और फिर कहते हैं उसको भुलाने से ही ...यह बड़ी आश्चर्य जनक बात है कि सकल जीव जग दीन दुखारी
कि सभी जीव आत्माएं उनके अंदर परमात्मा विद्यमान है लेकिन फिर भी वह दीन दुखी हुआ पड़ा है अब यदि इस अवस्था से उभरना है अर्थात अपने आप की पहचान करनी है अपने सच्चे खजाने को पाना है तो फिर सदगुरु महापुरुषों की चरण शरण में आओ ..वह तुझे यह सच्चा ज्ञान प्रदान करेंगे
जो हमारे सदगुरु देव जी महाराज जी ने हमको
कृपा करके प्रदान किया है
वो सच्चा ज्ञान विवेक कौन सा है कि नाम निरूपण नाम जतन ते ... सौ प्रगट जी मोल रतन ते..
कि जो हमारी काया के भीतर वह अविनाशी और सच्चिदानंद घन रूप परमेश्वर विद्यमान है मौजूद है और वह हमारी प्रतीक्षा भी कर रहे हैं वही हमारी मंजिल भी है
लेकिन हम उसे भूल गए हैं तो उसे हम कैसे प्रकट कर सकते हैं ...कैसे पा सकते हैं उसकी युक्ति भी बता रहे हैं
कहते हैं नाम निरोप नाम जतन ते सो प्रगट जिम मोल रतन ते जैसे खजाने में से रतन खान में से स्वयं प्रकट हो जाते हैं प्रयास करने पर
ऐसे ही इस सच्चे नाम की कमाई करने से सच्चे नाम
के लिए यतन करने से उसकी परख और पहचान करने से फिर वो परमेश्वर प्रकट हो जाते हैं जैसा के इस समय हमारे सामने प्रकट होकर के हमें अपने पावन श्री दर्शनों से निहाल कर रहे हैं...
तो सभी महापुरुषों ने यही संकेत किए हैं कि जो मेहंदी में रंग है ...
लकड़ी मध उदास... सहजो काया खोज ले ...काहे फिरत उदास ...
वो भी यही कह रही है ...कि जिस प्रकार से मेहंदी में रंग होता है मेहंदी के पत्ते लो लकड़ी लो उसकी ...उसमें रंग भरा हुआ है लेकिन स्वयं नहीं प्रकट होता उसको रगड़ना पड़ता है घिसना पड़ता है शरीर पर लगाना पड़ता है तब वो उसका रंग निखरता है और ऐसे ही लकड़ी मध उदास ..कि लकड़ी के अंदर अग्नि है लेकिन वह प्रकट हुए बिना गुप्त पड़ी है ऐसे ही कहते हैं कि काया के अंदर भी वो आनंद घन
परमेश्वर विराजमान है तो कैसे प्रकट होंगे कि नाम निरूपण नाम जतन से...और कहते सहजो काया खोज ले
इस काया के अंदर खोज कर लो अब इस काया के अंदर हम खोज कैसे करेंगे
वह भी सदगुरु महापुरुष युक्ति विधि बताएंगे और उन्होंने कृपा करके हमको
युक्ति विधि बता दी है व कौन सी युक्ति है
वो गुरुमुखों अजपा नाम की विधि है
हमारे श्री श्री 108 श्री परमहंस दयाल जी महाराज जी ने इस धरा धाम पर प्रकट हो करके उन्होंने कृपा की अपने गुरुमुखों
को अपने सेवकों को..
कि सहज समाधि अनाहत ध्वनि.. जप अजपा बतलाए
उन्होंने व सार विधि बतला दी कि वह सच्चा नाम हमारे अंतर में ही हो रहा है
हमारे स्वांसों में ही उसकी गूंज है अब उसके साथ सुरती को जोड़ना है वो शब्द अंदर ही है है बाहर से नहीं लाना है
अपनी सुरति को लगाना है उसमे , सुरति वृति को एकाग्र करना है
जब वो एकाग्र हो जाएगी सुरति और शब्द जब एकरूप हो जाएंगे
तो फिर महापुरुष सदगुरु और वह परमात्मा स्वयं ही प्रकट हो जाएंगे और कहीं जाना नहीं पड़ेगा
तो जो हमारा प्रयास था इस जीवात्मा का वो लगभग पूर्ण हो चुका है
कैसे ...पहले मानव जन्म मिल गया
इस जीवात्मा को ये भी ईश्वर की बहुत बड़ी कृपा हुई बहुत बड़ी बाशिश हुई फिर यह सत्संग ज्ञान विवेक मिला इसका ..कि मेरे आत्म स्वरूप को मैं जब तक प्रकट नहीं करूंगा तब तक मेरे दुखों का अंत नहीं हो सकता है और तीसरे फिर वो सारी विधि जो इसके लिए आवश्यक है वो हमारे
सदगुरु दाता दयाल जी महाराज जी ने हमको प्रदान कर दी है और उनका हमारे साथ मिलन
हो गया है
ऐसी कृपा महापुरुषों की हो रही है और
जब तक यह कृपा यह बशिश नहीं होती कोई कितना ही प्रयत्न करता रहे योग साधना भी करता रहे वह पूर्ण सिद्धि को नहीं प्राप्त कर सकता है जब तक के सदगुरु महापुरुषों की
कृपा ना हो जाए...
Bol Jai Kara Bol Mere Shri Guru Maharaj Ki Jai