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Katha 52
01 July 2024
गुरुमुखों यह श्री लीला हमारे हृदय सम्राट श्री पंचम पादशाही जी के समय की है
25 नवंबर सन् 2008 की बात है श्री गुरु महाराज जी श्री प्रयागधाम में शिमला पार्क में सैर कर रहे थे , साथ में कुछ महात्मा जन भी थे , तब श्री गुरु महाराज जी ने अचानक फ़रमाया :-
“”हमें कल प्रातः बम्बई जाना है , ट्रेन की टिकटों का प्रबंध हो सकता हो तो देखो नहीं तो हम अपनी कार से चलेंगे, हमें हर हाल में कल बंबई पहुँचना है “”
सेवा में जो महात्मा जन उपस्थित थे वो सोचने लगे कि अचानक श्री गुरु महाराज जी की ऐसी मौज क्यों उठी ?? इसमें अवश्य ही इनकी कोई विशेष लीला होगी ,
महापुरुषों के रहस्य को जीव बुद्धि समझ भी कहाँ सकती है , वो तो भूत , वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हैं ,
श्री आज्ञा को शिरोधार्य कर महात्मा जनों ने टिकिटों का प्रबंध कराया ,
उधर बम्बई आश्रम में प्रभु जी के शुभ आगमन की सूचना दी गई ,
अगली सुबह 26 नवम्बर को श्री गुरु महाराज जी ने बम्बई के लिए प्रस्थान किया ,
वहाँ रहने वाले सभी गुरूमुख प्रेमी प्रभु जी के अचानक आगमन की खबर सुन के ख़ुशी से झूम उठे ,
जैसे शमा जलती देख परवाने अपने आप दौड़े चले आते हैं ऐसे ही सभी गुरूमुख अपने अपने काम धंधे छोड़ के प्रभु जी के दर्शनों के लिए आश्रम में आ गये ,
श्री दर्शनों की दिव्य दात और श्री अमृत तुल्य वचनों की सौग़ात ने उनके रोम - रोम में अनूठी ख़ुशियाँ भर दी ,
शाम की श्री आरती पूजा के बाद लगभग 8 बजे ताज होटल में भयानक विस्फोटक स्थिति उत्पन्न हो गई जिसके साथ साथ कई अन्य स्थानों पर भी संकट की स्थिति बन गई,
कुछ गुरूमुख बिज़नेस के लिए होटल में ठहरे हुए थे जो श्री गुरु महाराज जी के आगमन की खबर सुन के श्री दर्शनों के लिए अमर धाम आश्रम में पहुँच कर लाभ उठा रहे थे , आने वाले समय से अनभिज्ञ सब प्रेमीजन श्री सतगुरु देव जी महाराज जी के श्री चरणो में निश्चिंत और सुरक्षित बैठे थे ,
जिस तरह माता -पिता अपने बच्चों का कभी अहित होता नहीं देख सकते और अपने तन पर कष्ट उठा कर अपने बच्चों के भारत पोषण की सम्भाल करते हैं उसी तरह आज त्रिकाल दर्शी महाप्रभु जी ने भी बंबई में कृपा फ़र्मा कर अपने प्रेमी गुरुमुखों को अपनी कृपा के साये में सुरक्षित कर उनकी जान की रक्षा की ,
उन्हें विनाशकारी पृस्थिति से उबारा , केवल यही नहीं आपकी उपस्थिति ने पूरी बंबई का कितना संकट टाला , कितने लोगों को काल का ग्रास बनने से बचाया , कितनी जान माल की रक्षा करी, यह महापुरुषों के अलावा और कौन जान सकता है ?
वरना उस समय बंबई शहर का दृश्य ही कुछ और होता ,
रात्रि में हुई ये भयानक दुर्घटना जब सुबह प्रत्येक व्यक्ति की ज़ुबान पर थी तो सभी गुरमुखों को ये सुखद अहसास होते देर ना लगी कि भक्तवत्सल महाप्रभु जी ने अकस्मात् बंबई में कृपा क्यों करी ,
इसलिए गुरुमुखों
अगर हमारे हृदय में परमात्मा के नाम का सिमरन उसके नाम का जाप चलता रहेगा तो वह प्रभु-परमात्मा हमारी जरूर रक्षा करेंगे सतगुरु अंतर्यामी है अंतर में उसके नाम का सिमरन करने से तथा विनती करने से वे जरूर सुनते हैं क्योंकि वह मालिक तो हर घट-घट में विराजमान है!
ऐसे ही एक दूसरी पातशाही जी श्री गुरु महाराज जी के समय की लीला है
भक्त थानाराम जी लक्की मर्वत जिला बन्नू के निवासी थे|
एक बार अचानक बीमार हो गए और बहुत इलाज करने पर भी ठीक न हुए|
रोग भयानक अवस्था तक पहुँच गया, डॉक्टर ने निराशजनक उत्तर दे दिया| भक्त थानाराम जी का कथन है कि जब आखिरी स्वांस में उन्होंने श्री दूसरी पाद्शाही जी का स्मरण किया तो क्या देखा कि सफेद वस्त्र धारण किये, सुनहरी तख्त पर श्री स्वामी जी विराजमान है और फरमा रहे है-‘उठो! घबराओ नहीं| अभी आपको दरबार की सेवा करनी है|’ मैं देखता ही रह गया परन्तु वह दिव्य स्वरुप कहाँ लुप्त हो गया| ज्योही आँखे खुली परिवार वाले मुझे मृतक समझ बैठे थे और मैंने अपने आपको कुछ स्वस्थ पाया| धीर-2 पूर्ण स्वस्थ हो गया| बाद में भक्त जी ने सोचा कि स्वामी जी की कृपा से मैं ठीक हो गया हूँ, अब इस शरीर से गुरु दरबार की सेवा करनी चाहिए| श्री वचनानुसार जीवन बनाना ही गुरुमुख का कर्तव्य है| पुनः वे श्री चरणों में शरणागत होकर सेवा करने लगे| स्वामी जी ने उन्हें साधु वेष प्रदान कर उनका नाम महात्मा ध्यान युक्तानन्द जी रखा|
तो गुरुमुखों हम कितने भाग्यशाली हैं
क्योंकि हमको साकार रूप में भगवान मिले है
जिनके पिछले जन्मों के पुण्य कर्म बहुत बहुत अधिक होते हैं
उन्हीं को श्री गुरु महाराज जी की चरण शरण मिलती है
हमारे परम पूजनीय रहबर जी अपने वचनों में फरमाते हैं के
श्री गुरु महाराज जी के जैसा अवतार न पहले कभी हुआ है ना आगे कभी होगा
यह सृष्टि का सबसे बड़ा अवतार है
अगर श्री गुरु महाराज जी जैसा अवतार सृष्टि में और कहीं होता तो हमारे श्री गुरु महाराज जी उनको बोलते आप वहां पर भक्ति का कार्य संभालो और हम यहां पर श्री आनंदपुर में संभालते हैं
मगर ऐसा नहीं है
इसीलिए हमारे श्री गुरु महाराज जी को देश विदेश जाना पड़ता है
श्री गुरु महाराज जी खुद ही कुदरत के कादर हैं
श्री गुरु महाराज जी सर्व कला समर्थि हैं
वह जो चाहें कर सकते हैं जिसको भक्ति देना चाहें दे सकते हैं कुल मालिक हैं
धर्मराज यमराज यमदूत यह भी सब श्री गुरु महाराज जी के प्रेमियों से डरते हैं और दूसरों को डराते हैं
जो श्री गुरु महाराज जी से सच्चा प्रेम रखता है
उसे दर-दर भटकने की कोई ज़रूरत नहीं है
जो जड़ को पानी देता है उसको पत्तों को पानी देने की आवश्यकता नहीं है
श्री आनंदपुर दरबार एक लासानी दरबार है
वैसे तो हमें हर किसी से अच्छा व्यवहार करना चाहिए क्योंकि हर एक जीव में परमात्मा khud विराजमान हैं
मगर भूल कर भी किसी भी श्री गुरु महाराज जी के Premi को सताना नहीं चाहिए
चाहे वह हमारे घर में रहता हो या घर से बाहर कहीं भी
श्री गुरु महाराज जी हर बात सहन कर लेंगे पर उनके Premi को कोई सताए तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे