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Katha 53
03 July 2024
एक गांव के अंदर 100 घर थे 3-400 लोगों की आबादी थी उस गांव में यह खासियत थी कि वहां पर
बिजली की कोई सप्लाई नहीं थी पीढ़ियां दर पीढ़ियां बीत गई वहां के लोगों को यह मालूम ही नहीं था कि बिजली नाम की कोई चीज होती है जिससे रात के अंधेरे को दूर किया जा सकता
एक बार संयोग वष एक घर का सदस्य शहर में चला गया वहां जाकर के उसको मालूम हुआ कि
बिजली का एक साधन ऐसा भी है जिससे रात के
अंधेरे को दूर किया जा सकता है
वह साधन जिसने बतलाया वह था पुराने समय का लालटेन
तो वो लालटेन लेकर के अपने गांव में आ गया
जैसे ही शाम को अंधेरा शुरू हुआ उसने अपने
घर में लालटेन जला दिया जैसे ही रात को घर में उजाला हुआ
पड़ोसियों ने भी देखा कि घर में रोशनी हो रही है तो सारे गांव के अंदर यह खबर फैल गई कि फलाने घर के अंदर रात को घर में उजाला हो गया है सारे घर के सदस्य आकर
के देखने लगे कि ऐसी कौन सी वस्तु है
जिससे रात के अंधेरे को दूर किया जा सके
अब विचार करने की बात है सभी लोगों ने
देखा लेकिन किसी के मन में यह खुशी नहीं
हुई कि इसके घर में उजाला हो गया है हर
किसी के मन में यह ईर्षा पैदा हो गई कि हमारे घर में तो अंधेरा है इसके घर में
उजाला कैसे हो गया अब उनके सामने दो
रास्ते थे या तो बाकी 99 घर के सदस्य शहर
जाएं और लालटेन लेकर के आए जो मुश्किल काम था और दूसरा आसान रास्ता था इसके लालटेन
को भी गायब कर देना
तो सभी ने मिलकर के उसके लालटेन को खत्म कर दिया गायब कर दिया
कहने का भाव यह है यह संसार के लोगों की तासीर है अगर कोई संसार के अंदर तरक्की कर रहा है आगे बढ़ रहा है तो संसार के लोगों को सहन नहीं होता उसकी टांग खींचने की
कोशिश करते हैं उसे नीचा गिराने की कोशिश करते हैं तो महापुरुष वर्णन करते हैं यह संसार के लोगों की तासीर ही ऐसी है कभी आपको जीवन में तरक्की करने ही नहीं देंगे
महापुरुष ही है जो जीव के हितकारी बनकर के संसार में प्रकट होते और निस्वार्थ भाव से अपने सेवकों की रक्षा
करते हैं संतों ने भी अपनी वाणी में वर्णन किया है
सतगुरु बिना कोई मीत नहीं सारथ का संसार.. बिन स्वार्थ सतगुरु करे निश दिन पर उपकार
श्री आरती पूजा में रोजाना हम गायन करते हैं इस
संसार के अंदर महापुरुषों के सिवा हमारा
कोई भी सच्चा हीतैशी नहीं है जितने भी
रिश्ते नाते हैं सारे स्वार्थ के हैं तोमहापुरुष वर्णन करते हैं इस संसार में आकर के अगर जीव को यह मानुष चोला प्राप्त हुआ
है तो केवल केवल भक्ति का सच्चा धन प्राप्त करने के लिए हुआ है इसलिए वर्णन करते हैं जो भक्ति के साधन बनाए हैं पांच नियम है उनकी श्रद्धा से रोजाना पालना करना ही हर गुरुमुख का ये परम कर्तव्य बन जाता है
जब महापुरुष इतनी हमारे ऊपर रहमत कर रहे हैं तो हमारा भी यह फर्ज बन जाता है पांचों नियमों की श्रद्धा से पालना
करते हुए दरबार के नियमों को निभाते हुए भक्ति का सच्चा धन प्राप्त करले
क्युकी गुरुमुखों
हम सब गुरुमुख के ऊपर हमारे महाप्रभु परम इष्ट देव श्री श्री
108 श्री परमंस दयाल महाराज जी की अपार कृपा है जो उन्होंने हमारे ऊपर अपार रहमत करते हुए ऐसे आलीशान दरबार की रचना की है
हम बैठ कर के यह विचार करें कि महापुरुषों का धरा धाम पर प्रकट होकर के ऐसे दरबार की रचना करने का असली
मकसद क्या था महापुरुषों का मकसद था कि जो भी जीव उनकी चरण शरण में आ गया वह हमेशा हमेशा के लिए सुखी हो जाए
आनंदित हो जाए महापुरुषों ने ऐसे दरबार की रचना
इसलिए कि जीवों को भक्ति से भरपूर करने के
लिए महापुरुषों ने कुछ भक्ति के साधन
भी बनाए जिसको अपना करके जीव सहज ही भक्ति
के सच्चे धन को प्राप्त कर सकता है
वह भक्ति के साधन कौन से हैं श्री आरती पूजा गुरु दरबार के निष्काम भाव से सेवा सत्संग शवास शवास के अंदर नाम का स्मरण और
दो घंटे का भजन ध्यान
यह महापुरुषों ने भक्ति के साधन बनाए हैं
और गुरुमुख प्रेमी इन साधनों की श्रद्धा से रोजाना पालना करते हुए हमेशा के लिए आनंद से अपने जीवन को व्यतीत करते हैं
अब संसार की ओर अगर दृष्टि डाल कर के देखें कि आम संसारी जीवन कैसा है तो देखने में यही आता है कि आम संसारी इंसान हमेशा दुखों से तकलीफों से घिरा रहता है उसका कारण क्या है आम संसारी जीव ने अपने हृदय के अंदर संसार के पदार्थों को रिश्ते नातों को और भी जितने भोग
पदार्थ हैं अपने हृदय के अंदर भर रखा है
जिस हृदय के अंदर महापुरुषों का सिंहासन लगना था वहां पर विषय वासनाओं ने डेरा डाल रखा है अब जिस चीज की तासीर जैसी होती है उसका प्रभाव भी वैसा ही होता है
संसार के पदार्थों की तासीर हमेशा दुख देने वाली है
परेशानी पैदा करने वाली है तो जीव को उनको
अपने हृदय में बसा करके सुख की प्राप्ति
कैसे हो सकती है
जब तक वह संसार की
इच्छाओं को अपनी कामनाओं को हृदय से बाहर
निकाल नहीं देता और महापुरुषों को अपने
हृदय के अंदर विराजमान नहीं कर लेता तो वह
कभी भी शाश्वत सुख को प्राप्त नहीं कर
सकता दूसरी तरफ गुरुमुख जन होते हैं वह महापुरुषों की कृपा से यह जानते हैं कि दुनिया के जितने भी भोग पदार्थ हैं जितने भी रिश्ते नाते हैं और भी संसार के जितने भी साधन है वो सारे के सारे शारीरिक प्रयोग के लिए हैं
इसलिए वोह हमेशा अपने हृदय की तार को महापुरुषों के चरणों से जोड़ कर के संसार में रहते हुए भी सुख से
जीवन व्यतीत करते हैं
महापुरुषों ने यह कभी नहीं फरमाया कि सांसारिक काम को छोड़ कर के केवल भक्ति ही करनी है महापुरुष
वर्णन करते हैं संसार के सारे काम करो रिश्ते नाते भी
निभाओ घर परिवार को भी पालो धन दौलत को भी
प्राप्त करो लेकिन एक बात को हमेशा याद रखो कि मैंने दिल से हमेशा महापुरुषों के चरणों से जुड़ा रहना है
यह महापुरुष संसार में प्रकट होकर के हमेशा जीव को यही उपदेश करते हैं कि संसार के अंदर कौन सी सत्य वस्तु है और सी कौन सी वस्तु नाशवान है