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कानून सुधार का भी एक माध्यम है। लोकतंत्र की यहीं खूबी है कि यहां अपराधी को भी अपने बचाव के लिए पूरा अवसर प्रदान किया जाता है। दरअसल कोई भी सजा चार सिद्धांतों पर निर्भर करती है। ये निवारक हो सकती है। भय पैदा कर दंडात्मक हो सकती है। साथ ही ये रक्षात्मक भी हो सकती है ताकि किसी अपराध को रोका जा सके या अपराधी को सुधार कर मानव चरित्र को मजबूत बनाया जा सके। क्षमादान के पीछे भी ये आखिरी सिद्धांत काम करता है। संविधान में ये व्यवस्था की गई है कि कोर्ट से दोषी के लिए मुकर्रर फांसी की सजा से बचने और उसे जीवनदान देने का मौका दिया जाए। सभी कोर्टों से दोषी की दया याचिका खारिज होने के बाद भी अपराधी अपने जीवन के लिए राष्ट्रपति से सामने दया की गुहार लगाता है। ऐसे मामलों में राष्ट्रपति को ये अधिकार है कि वो या तो दया याचिका खारिज कर दोषी को जीवन दान दें या उसे फांसी के पंदे पर लटकने के लिए याचिका खारिज कर दें। दरअसल संविधान के अनुच्छेद 72 में प्रावधान है जिसके तहत राष्ट्रपति किसी दोषी की सज़ा को पूरी तरह से या तो माफ कर सकता है या सज़ा की प्रकृति में ही बदलाव कर सकता है। राज्यों के राज्यपाल को भी इस मामले में कुछ विशेष अधिकार दिए गये हैं। विशेष के इस अंक में हम बात करेंगे निर्भया मामले से जुड़ी दया याचिका की पूरी जानकारी देंगे, सात ही बताएंगे अनुच्छेद 72 में कितनी तरह के क्षमादान का जिक्र है और दया याचिका के महत्व पर भी विस्तार से प्रकाश डालेंगे।
Anchor - Amrita Chourasia
Producer - Rajeev Kumar, Abhilasha Pathak, Amrita Chourasia
Production - Akash Popli
Reporter - Bharat Singh Diwakar
Graphics - Nirdesh, Girish, Mayank
Video Editor - Azhar Ansari, Deepender Singh Tanwar, Rama Shankar
Social Media - Aparna, Purna Chandra Mohapatra, Vaseem Khan